

एनडीआरएफ टीम द्वारा 170 फिट गहरे गड्डे में हॉरिजोंटल टनल खोदने का कार्य लगातार जारी, जिला कलक्टर बोली यह राजस्थान का सबसे लम्बा व मुश्किल ऑपरेशन
टनल खोदने के कार्य में पत्थर व वातावरणीय परिस्थितियां बन रही बाधा, इधर चेतना की माँ समेत परिजनों की आंंखे पथराई, टुटी हुई उम्मीद अभी भी बाकी
कोटपूतली : सोमवार, 23 दिसम्बर की दोपहर करीब 02 बजे कोटपूतली के ग्राम किरतपुरा की ढ़ाणी बड़ीयाली में बोरवेल में गिरी 03 वर्षिय मासूम बालिका चेतना पुत्री भूपेन्द्र चौधरी को 06 दिन से अधिक का समय 150 फिट गहरे बोरवेल में हो चुका है। 03 वर्षिय मासूम बालिका चेतना अचेत अवस्था में भूख-प्यास की तड़प के साथ 150 फिट गहरे गड्डे में 150 घण्टे बीता चुकी है। लाख जतन के बावजूद भी ऑपरेशन चेतना सफल नहीं हुआ है। अपार हताशा और निराशा के साथ चेतना को रेस्क्यू करने के लिये एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, सिविल डिफेंस, आरएएसी, पुलिस-प्रशासन समेत नगरपरिषद कोटपूतली का अभियान 07वें दिन रविवार को भी बदस्तुर जारी रहा। मौके पर जिला कलक्टर कल्पना अग्रवाल व एसपी राजन दुष्यंत के नेतृत्व में लगातार टीमें डटी रहकर अपने हरसम्भव प्रयास कर रही है। इस सम्बंध में जिला कलक्टर कल्पना अग्रवाल ने प्रैस से बातचीत करते हुये कहा कि इस रेस्क्यू की तुलना अन्य ऑपरेशन से नहीं की जा सकती। यह राजस्थान का सबसे लम्बा व मुश्किल ऑपरेशन है। कुल मिलाकर बात की जाये तो यह राजस्थान ही नहीं बल्कि पुरे भारत का सबसे बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन बन चुका है। वहीं दुसरी ओर चेतना के परिजनों समेत ग्रामीणों का भरोसा अब पुलिस प्रशासन व सरकार के साथ-साथ नीयति से भी उठ चुका है। रेस्क्यू ऑपरेशन में एक के बाद एक पेश आ रही चुनौतियों ने परिजनों व ग्रामीणों की उम्मीदें लगभग खत्म कर दी है। मौके पर चारों और हताशा व निराशा का माहौल है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर प्लान बी समय से शुरू कर दिया गया होता तो शायद बच्ची अभी तक बोरवेल के बाहर होती। इधर 03 वर्षिय मासूम के इंतजार में बैठी चेतना की माँ धोली देवी की आँखें पथरा गई है, आँसू सुख चुके है। धोली देवी अभी भी ईश्वर के साथ-साथ रेस्क्यू टीम, पीएम मोदी व सीएम भजनलाल शर्मा से अपनी बच्ची की सलामती की गुहार लगा रही है। धोली देवी की स्थिति देखकर अन्य परिजनों व ग्रामीणों का मन भी दु:ख व कष्ट से भरा हुआ है। जहाँ बोरवेल में फंसी बच्ची लगभग सात दिनों से भूखी-प्यासी है, वहीं उसकी माँ धोली देवी ने भी इतने दिनों से कुछ नहीं खाया है। पीडि़त परिवार के खाने-पीने का ध्यान पड़ौसी व ग्रामीण ही रख रहे है। धोली देवी की स्थिति पर सीएमएचओ डॉ.आशीष सिंह शेखावत के नेतृत्व में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की टीम लगातार नजर बनाये हुये है। साथ ही अन्य परिजनों की चिकित्सकीय जाँच भी की जा रही है। डॉ.शेखावत ने बताया कि धोली देवी कुछ खा नहीं रही है, जिन्हें प्राथमिक उपचार दिया गया है। चेतना के रेस्क्यू को लेकर फिलहाल बनी हुई स्थिति के आगे सभी बेबस है। रेस्क्यू में प्लान ए के विफल होने के बाद प्लान बी के सहारे चेतना को बाहर निकालने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन उसमें भी तकनीकी खामियों के साथ-साथ बाधाओं पर बाधायें आती जा रही है। इधर बच्ची का कोई मुवमेंट भी नहीं मिल रहा है। इसको लेकर एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, सिविल डिफेंस, आरएएसी समेत स्थानीय पुलिस प्रशासन के साझा प्रयास अभी तक सिफर ही साबित हुये है। स्थानीय प्रशासन द्वारा देशी तकनीक से प्लान ए के विफल हो जाने के बाद पूर्णतया: प्लान बी पर निर्भर होकर आगे के प्रयास किये जा रहे है। जिला कलक्टर कल्पना अग्रवाल व एसपी राजन दुष्यंत निरन्तर एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, सिविल डिफेंस, स्थानीय पुलिस प्रशासन एवं होम गार्ड के अधिकारियों के साथ मौके पर मौजूद रहकर हालातों को सम्भाले हुये है। घटना के बाद से ही एडीएम ओमप्रकाश सहारण, एसडीएम बृजेश चौधरी, एसपी राजन दुष्यंत, एएसपी वैभव शर्मा, नगर परिषद आयुक्त धर्मपाल जाट समेत पुलिस प्रशासन के आला अधिकारी लगातार मौके पर मौजूद है। पुलिस द्वारा किरतपुरा की ढ़ाणी बडिय़ाली की ओर जाने वाले रास्तों पर बैरीकेडिंग भी की गई है। ताकि बाहरी क्षेत्रों से आने वाले लोगों की भीड़ मौके पर एकत्रित ना हो। लम्बा समय बीतने पर बच्ची की सुरक्षा को लेकर चिंता लगातार बढ़ती जा रही है। वहीं दुसरी ओर विधायक हंसराज पटेल रविवार को भी दिन भर मौके पर मौजूद रहकर रेस्क्यू अभियान की मॉनीटरिंग करते रहे। शनिवार रात्रि पूर्व मंत्री राजेन्द्र सिंह गुढ़ा व रविवार तडक़े नांगल चौधरी (हरियाणा) की विधायक मंजू चौधरी ने मौके पर पहुंचकर रेस्क्यू अभियान का जायजा लिया। चेतना को जल्द से जल्द रेस्क्यू करने के लिये बीकानेर के नौखा से विधायक सुशीला रामेश्वर डूडी व सूरतगढ़ विधायक डुंगरराम गेदर ने मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा को पत्र लिखा है।
टनल खोदने में पत्थर बन रहे परेशानी का सबब
उल्लेखनीय है कि चेतना करीब 750 फिट गहरे बोरवेल में करीब 150 फिट पर अटकी हुई है। प्रशासन द्वारा प्लान ए के तहत देशी तरीके से प्रयास विफल रहने के बाद प्लान बी के तहत हरियाणा के गुरूग्राम से मंगवाई गई पाईलिंग मशीन से शुक्रवार रात्रि मौके पर खोदे गये 170 फिट गहरे गड्डे में केसिंग का कार्य पुरा किया गया। रात भर रूक-रूक कर होती रही बारिश से केसिंग में वैल्डिंग के कार्य के दौरान बाधा भी सामने आती रही। गड्डा खोदने के बाद उसमें एल आकार की टनल बनाने का कार्य किया जा रहा है। जिसके लिये एनडीआरएफ के दो-दो सदस्यों की तीन अलग-अलग टीमें बनाई गई है जो बारी-बारी से टनल में उतर कर गड्डा खोद रही है। उक्त टनल की खुदाई में बेहद चुनौतियां पेश आ रही है। करीब 08 से 09 फिट लम्बी टनल में पत्थर आ गया है। जिसको खोदने के लिये प्रत्येक दल के सदस्यों को पंखा, ड्रिल, हैमरींग व कटर मशीन, लाईट उपलब्ध करवाई गई है। साथ ही ऑक्सीजन व सीसीटीवी फुटेज की व्यवस्था भी की गई है। भू गर्भ की इतनी गहराई में करीब 35 डिग्री की गर्मी से उत्पन्न हो रहे हालात भी चुनौती का सबब साबित हो रहे है। एक बार में ड्रिलिंग टीम के तीन सदस्य गड्डे में मौजूद रहते है। जिनमें से दो खुदाई करते है एवं एक सदस्य संवाद में रहता है। ताकि नीचे की स्थिति ऊपर बताई जाती रहे। खुदाई के बाद टनल से पत्थरों को बाहर भी निकाला जा रहा है। इसके बाद टनल का नुकिली सतह भी परेशानी का सबब बन रही है। पत्थरों की ड्रिलिंग में उड़ रही धूल भी एनडीआरएफ कार्मिकों के लिये नई चुनौतियां खड़ी कर रही है। इसके लिये विशेष मास्क व चश्मा पहनकर कार्य किया जा रहा है। इससे पूर्व केसिंग का कार्य खत्म होने के बाद विशेष टीम को उतार कर गड्डे में ऑक्सीजन के लेवल व रोशनी की जांच की गई। 20 मिनट तक गड्डे में ऑक्सीजन समेत भौगोलिक स्थिति व वातावरण की जानकारी भी ली गई। जिसके बाद 90 डिग्री पर एल बैंड शेप में 08 से 09 फिट लम्बी हॉरिजोंटल टनल खोदी जा रही है। जिसमें तीनों टुकडिय़ां एक-एक कर टनल की खुदाई का कार्य कर रही है। टनल में भी पत्थर आने की वजह से कटर व विशेष संसाधनों का उपयोग कर धीरे-धीरे टनल को खोदा जा रहा है। टनल पुरी खोदने के बाद ही चेतना को रेस्क्यू किया जा सकेगा। इसमें रैट माईनर्स का सहयोग भी लिया जायेगा। बारिश की सम्भावनाओं को देखते हुये वॉटर पु्रफ टैण्ट भी लगाया गया है। एनडीआरएफ निरीक्षक योगेश मीणा ने बताया कि बच्ची हमारे ऊपर हो इससे हम नीचे से बोरवेल में बच्ची तक सबसे सुरक्षित तरीके से पहुंच सकेगें। फिलहाल जी शेप हुक के जरिये बच्ची को बोरवेल में अटकाया हुआ है। जहां देशी तकनीक से एल बैंड लगाकर अम्बे्रला बेस व जी शेप हुक लगाकर होल्ड पर रखा गया है। मीणा ने यह भी बताया कि दौसा में हुये रेस्क्यू ऑपरेशन से यहां परिस्थितियां भिन्न है। जिसके चलते रेस्क्यू में समय लग रहा है। मंगलवार तडक़े से ही बालिका की कोई मुवमेंट दिखाई नहीं दे रही है। प्रशासन द्वारा घटना स्थल पर ग्रामीणों को अलग हटा दिया गया है। सम्भवतया: रविवार देर रात्रि तक बच्ची को रेस्क्यू किये जाने की उम्मीद है। प्रशासन द्वारा मौके पर विशेष भूमिगत माईनिंग एक्सपर्ट व ट्रैक्टर ब्रेकर मशीन को भी बुलाया गया है। समाचार लिखे जाने तक एनडीआरएफ टीम द्वारा करीब 05 फिट की टनल खोद ली गई थी एवं कार्य लगातार जारी था।
क्या है मामला
विगत सोमवार, 23 दिसम्बर की दोपहर करीब 02 बजे मासूम बालिका चेतना (03) अपनी बड़ी बहन काव्या (07) के साथ बोरवेल के पास खेलते हुये उसमें अचानक गिर गई थी। घटना की सूचना मिलते ही स्थानीय पुलिस प्रशासन में हडक़म्प मच गया था। जिसके बाद जयपुर से एनडीआरएफ-एसडीआरएफ की टीम को बुलाकर चेतना को रेस्क्यू करने का ऑपरेशन शुरू किया गया था। लगभग 750 फिट गहरे बोरवेल में चेतना करीब 150 फिट पर फंसी हुई थी। उसे लोहे की एल बैंड के देशी जुगाड़ के जरिये निकालने का प्रयास किया गया, लेकिन करीब 3-4 प्रयास के बावजुद भी वह प्रयास विफल ही रहा है। इस दौरान उसे कई बार 30-40 फिट ऊपर उठाकर करीब 120 फिट तक लाया गया था। जिससे उसके बाहर निकलने की सम्भावनायें बन गई थी, लेकिन हर बार यह प्रयास विफल रहे। इस दौरान कैमरे में तकनीकी खराबी आ जाने के कारण ऑपरेशन रूका रहा। मौके पर किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिये चार एम्बुलेंस भी तैनात की गई है। बच्ची को बचाने में एनडीआरएफ के 25 व एसडीआरएफ के 15 जवान जुटे हुये है। वहीं नगरपरिषद के 25 कार्मिकों के साथ-साथ पुलिस के 40 जवान भी मौके पर तैनात है। इसके अलावा सीएमएचओ डॉ.आशीष सिंह शेखावत व बीसीएमओ डॉ.पूरण चंद गुर्जर के नेतृत्व में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की टीम को भी तैनात किया गया है। चिकित्सकीय टीम को अलर्ट रखा गया है। मौके पर स्वास्थ्य विभाग से पीडीयाट्रीशियन, एनेस्थिशियां विभागाध्यक्ष एवं 19 नर्सिंगकर्मी भी मौजूद है। वहीं प्रति घण्टे 01 ऑक्सीजन सिलेंडर इस्तेमाल में लिया जा रहा है। अभी तक करीब 200 से अधिक ऑक्सीजन सिलेंडर इस्तेमाल किये जा चुके है।